तमस (उपन्यास) : भीष्म साहनी
इन कमरों में घूमते रिचर्ड को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वह ज़िले का सबसे बड़ा अफ़सर है। यहाँ पर तो वह भारतीय इतिहास का मर्मज्ञ था, भारतीय कला का पारखी। हाँ, जब वह प्रशासक की कुर्सी पर बैठता तो वह ब्रिटिश साम्राज्य का प्रतिनिधि था, और उन नीतियों को कार्यान्वित करता जो लन्दन से निर्णीत होकर आती थीं। एक काम को दूसरे काम से अलग रखना, एक भावना को दूसरी भावना से अलग रखना उसके प्रशिक्षण की, उसके स्वभाव की विशिष्टता थी। वह एक तरह के काम से बिलकुल दूसरी तरह के काम में बड़ी आसानी से अपने को ढाल लेता था। वह निजी रुचियों को सरकारी काम से अलग रख सकता था, अलग से देख सकता था। एक विशेष अनुशासन में उसका जीवन घूमता था। सप्ताह में तीन दिन वह कचहरी करता था, जिला मजिस्ट्रेट के नाते मुकद्दमे सुनता था। जब जज की कुर्सी पर बैठता तब वह भूल जाता कि वह हाकिमों का नुमाइन्दा है, और नेटिव लोगों के मुकद्दमे सुन रहा है। तब वह न्याय करता, इंडियन पीनल कोड की धाराओं को यथावत् लागू करता। एक क्षेत्र के विचार और भावनाएँ दूसरे क्षेत्र में उलझ नहीं पाती थीं। इसी कारण से उसे मानसिक परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता था, वह कभी भी द्विविधा का शिकार नहीं होता था। उसके अपने विश्वास क्या हैं, धारणाएँ क्या हैं, इनके बारे में निश्चय से कुछ भी कह पाना कठिन था, शायद रिचर्ड ने यह सवाल अपने से भी कभी न पूछा होगा। जब कभी द्विविधा उठती तो वह अपने संवेदन को, अपने विचारों को अपनी डायरी में उँडेल देता था, प्रशासन के क्षेत्र में उसकी निजी मान्यताओं का कोई दखल नहीं था, बल्कि वे असंगत थीं। यह विचार कि हमारा आचरण हमारी मान्यताओं के अनुरूप होना चाहिए, एक ऐसा भोंडा आदर्शवाद है जिससे सिविल सर्विस में नाम लिखाते ही अफ़सर अपना पिंड छुड़ा लेता है। फिर रिचर्ड की अपनी भूमिका क्या थी, प्रशासन में उसका विशिष्ट योगदान किस बात में था? वह उस योग्यता में पाया जाता था जिससे वह ब्रिटिश सरकार की नीतियों को कार्यान्वित करता था; उस पैनी दृष्टि में था, उस सूझ में था जिससे वह स्थिति को समझ लेता था, तथ्यों को पकड़ लेता था; उस चौकसी में था, जिससे, बिना किसी आहट के, ब्रिटिश सरकार की नीतियों को अमली जामा पहनाया जाता था। यों तो यह सवाल ही असंगत है कि उसकी निजी मान्यताएँ क्या थीं। कोई भी व्यक्ति अपना व्यवसाय चुनते समय उसके नैतिक पक्ष के बारे में सोचता ही कब है, वह तो केवल निजी लाभ और निजी हित के बारे में ही सोचता है।
एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले दोनों डाइनिंग रूम की ओर चल पड़े। लीज़ा को घर में यही कमरा सबसे अधिक पसन्द था। बलूत की लकड़ी की बनी काले रंग की गोल मेज़ के ऐन बीचोबीच पीतल की एक चौड़ी गोल तश्तरी रखी थी जिसमें लाल गुलाब के फूल चुन-चुनकर भर दिए गए थे। इस तश्तरी के ऐन ऊपर जालीदार शेडवाला बिजली का लैम्प था जो छत पर से लटककर सीधा तश्तरी के ऊपर उतर आया था। रोशनी का वृत्त सीधा फूलों की तश्तरी पर पड़ रहा था और जालीदार शेड में से छन-छनकर रोशनी टेबल पर रखी चीनी की सुन्दर प्लेटों और उसके आसपास रखे लाल रंग के सर्वियेटों पर पड़ रही थी। रिचर्ड को इस तरह की सजावट में रस मिलता था और लीज़ा जानती थी कि उसके साथ रहते हुए उसे रिचर्ड की ही सनकों के अनुरूप अपने को ढालना होगा।